Why a woman should not be touched during menstruation Why does a woman menstruate?
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मित्रो , आज के इस इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे की स्त्रियों को माशिक मासिक धर्म के दौरान कौन से कार्य नहीं करने चाहिए !
मित्रो एक बार माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम कर रहे होते हैं तभी देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती है हे प्रभु आज मेरे मन में एक शंका उत्पन्न हो रही है
केवल आप ही मेरी इस शंका का समाधान कर सकते हैं
भगवान विष्णु कहते हैं हे प्रिय तुम्हारे मन में जो भी शंका हो निसंकोच होकर पूछो मैं तुम्हारी सभी शंकाओं का समाधान अवश्य करूंगा
देवी लक्ष्मी कहती है हे प्रभु के श्राप के कारण स्त्रियों को मासिक धर्म की पीड़ा सहन करनी पड़ती है मेरा दूसरा प्रश्न यह है प्रभु एक रजस्वला स्त्री को कौन से कार्य नहीं करने चाहिए जिससे उन्हें पाप लगता है
भगवान विष्णु कहते हैं हे देवी आज तुमने मानव जाति के कल्याण के लिए बहुत ही उत्तम प्रश्न किया है तुम्हारे इन सभी प्रश्नों का उत्तर देव शर्मा की इस प्राचीन कथा से प्राप्त हो जाएगा इस महान कथा का श्रवण करने मात्र से ही समस्त पापों का नाश होता है जो भी पति पत्नी इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनते है उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है इसीलिए हे देवी आप भी इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनिएदेवी लक्ष्मी कहती है प्रभु यह देव शर्मा कौन थे उनका आचार विचार कैसा था मैं इस कथा को अवश्य सुनना चाहती हूं कृपया आप इस कथा को मुझसे कही है मैं इसे ध्यानपूर्वक पूरा अवश्य सुनूंगी भगवान विष्णु कहते हैं हे देवी पूर्व काल की बात है मध्य देश में एक अत्यंत शोभायमान नगरी थी
उस नगरी में देव शर्मा नाम के ब्राह्मण रहा करते थे देव शर्मा को समस्त शास्त्रों और वेदों का ज्ञान था
वह परम बुद्धिमान गुणवान तथा धर्म कार्य में तत्पर रहता था
सभी वर्णों के लोग उन्हें बड़ा सम्मान देते थे वे प्रतिदिन यज्ञ दान धर्म तथा संध्या उपासना किया करते थे वे पशु पुत्र बंधु बांधव तथा धन संपत्ति से संपन्न है
देव शर्मा की पत्नी का नाम भगना था
वह भी अत्यंत चरित्रवान गुणवान तथा पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली स्त्री थी
फिर एक दिन देव शर्मा ने अपने घर पर सत्यनारायण की पूजा रखी और सभी ब्राह्मणों को स्वयं जाकर निमंत्रण दिया नगर में निवास करने वाले समस्त मनुष्यों को उसने पूजा के लिए तथा भोजन के लिए बुलाया फिर पूजा के दिन समस्त ब्राह्मण उसके घर पर पधारे देव शर्मा ने सभी ब्राह्मणों का विधिपूर्वक पूजन किया और उनका आदर सत्कार किया फिर उसने सभी ब्राह्मणों को घर के अंदर बुलाया और सुंदर आसन देकर उन्हें बिठाकर मिष्टान्न भोजन कराया ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद उसने भगवान का स्मरण करते हुए सभी को वस्त्र आदि का दान करके विदा किया वे सभी ब्राह्मण देव शर्मा को आशीर्वाद देकर वहां से चले गए
उसके बाद उसने अपने परिवार बंधु बांधव तथा अनेक दीन और भूखे लोगों को भोजन कराया इस प्रकार से सभी को भोजन कराकर और पूजा संपन्न करके जब वह ब्राह्मण अपने घर के द्वार के सामने खड़ा रहा तब उसने देखा कि उसके घर के सामने एक कुतिया और बैल बात कर रहे थे
उस ब्राह्मण ने उस कुतिया और बैल की पूरी बात सुनी तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ वह कुतिया और बैल उसके माता पिता ही थे जो पिछले जन्म के पाप के कारण इस जन्म में कुतिया और बैल बन गए थे तब वह ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा ये दोनों तो साक्षात मेरे माता पिता ही है
जो मेरे घर पर पशु बनकर आए हैं किस कारण से इन दोनों को प्राणियों का शरीर प्राप्त हुआ
अब इन के उद्धार के लिए मैं क्या करूं इस प्रकार विचार करते हुए उस ब्राह्मण को रात भर नींद नहीं आई और वह रात भर भगवान का स्मरण करते हुए सोच विचार करने लगा
उसने सोचा मेरे माता पिता की मुक्ति का उपाय केवल मुनि वशिष्ठ जी ही बता सकते हैं
इसीलिए सुबह होते ही देव शर्मा स्नान आदि कार्य सम्पन्न करके मुनि वशिष्ठ जी के आश्रम पर पहुंच गया
आश्रम पर आते ही मुनि वशिष्ठ जी ने देव शर्मा का स्वागत किया
वसिष्ठ जी कहने लगे हे ब्राह्मण श्रेष्ठ आज किस कारण से आपका हमारे आश्रम में आगमन हुआ है आप दुखी दिखाई पड़ते हो आपके दुख का क्या कारण है बताओ देव शर्मा कहता है हे मुनिवर आपको प्रणाम है आपके दर्शन से आज मेरा जन्म सफल हुआ है हे मुनीश्वर आज में
आपके पास एक शंका लेकर आया हूँ कृपया आप ही मुझे इस दुख से बाहर निकाल सकते हैं मैं अत्यंत दुखी और दुर्बल हो गया हो वसिष्ठ जी कहते हैं हे ब्राह्मण दुख ना करो
तुम्हारी जो भी शंका हो निसंकोच होकर पूछो मैं अवश्य तुम्हारी शंका का समाधान करूंगा
फिर देव शर्मा कहता है
हे मुनिवर कल मैंने अपने घर पर भगवान विष्णु का पूजन किया तथा अनेक ब्राह्मणों को और भूखे लोगों को भोजन कराया विधिपूर्वक भगवान का पूजन किया फिर मेरे द्वार पर एक कुतिया और एक बैल आ गया दोनों मेरे घर के सामने खड़े होकर बात कर रहे थे सबसे पहले कुतिया उस बैल से इस प्रकार से कहने लगी हे स्वामी
आज जो घटना घटी उसे सुनिए हमारे पुत्र के घर में ब्राह्मणों के भोजन के लिए जो दूध रखा था एक सांप ने उस दूध के बर्तन में अपना विश्व उगल दिया था जिसे देखकर मुझे बड़ी चिंता होने लगी उसी दूध से भोजन बनने वाला था अगर सभी लोग उस दूध को खा लेते तो उनकी मृत्यु हो जाती है इसीलिए
मैंने उस बर्तन में से सारा सारा दूध पी लिया जब बहू की दृष्टि मुझ पर पड़ी तो उसने मुझे खूब पीटा जिससे मेरा अंग भंग हो गया मुझे बहुत पीड़ा हो रही है इसी कारण से में लड़खड़ाते हुए चल रही हो मुझे यह पीड़ा सहन नहीं हो रही है
कुतिया की बात सुनकर वह बैल बहुत दुखी हुआ और वह खुद का वृतांत सुनाने लगा हे प्रिय अब मैं तुम्हें मेरे दुख का कारण सुनाता हूँ मैं पूर्व जन्म में इस ब्राह्मण का पिता था आज इस ब्राह्मण ने सभी लोगों को भोजन कराया किंतु इसने मेरे सामने घास तक नहीं डाली और ना ही मुझे जल पिलाया
इसी कारण से मैं बहुत दुखी हो गया हो फिर देव शर्मा कहने लगा इस प्रकार से अपने माता पिता को कुतिया और बैल के रूप में ऐसा बोलते हुए देख कर मुझे बड़ा दुख हो रहा है मुझे रात भर नींद नहीं आ रही है हर क्षण मुझे चिंता सता रही है मैंने कभी कोई पाप नहीं किया है हमेशा धर्म के कार्य किए हैं
फिर भी मेरे माता पिता को ऐसे कष्ट झेलने पड़ रहे हैं इसी कारण से आज मैं आपके पास आया हो कृपया आप अपनी योगशक्ति से पता करके मुझे बताइए किस कारण से मेरे माता पिता की ऐसी दुर्दशा हुई है और उनकी मुक्ति के लिए मुझे कौन सा कम करना चाहिए फिर गुरु वशिष्ठ ध्यान लगाते हैं और उस ब्राह्मण के माता पर
ताकि पूर्व जन्म के कर्मों को देखते हैं और देव शर्मा से कहने लगते हैं हे ब्राह्मण तुम्हारे माता पिता ने पिछले जन्म में घोर पाप किया है उसी पाप के कारण आज उनकी ऐसी दुर्दशा हुई है
देव शर्मा कहता है हे गुरुदेव किस पाप के कारण मेरे माता पिता की दुर्दशा हुई है कृपया विस्तार से बताइए मैं जानना चाहता हो
फिर ऋषि वसिष्ठ कहते हैं हे ब्राह्मण देवता तुम ध्यान से सुनो ये बैल जो तुम्हारे पिता है यह पिछले जन्म में कुंडी नगर के श्रेष्ठ ब्राह्मण रहे हैं इन्होंने एक दिन एकादशी का व्रत करके भोजन किया था एकादशी के व्रत के दिन इसने दान धर्म भी नहीं किया इसने द्वार पर आई गायों को कभी भोजन नहीं की
लाया इसने अपने पितरों का श्राद्ध भी विधिपूर्वक नहीं किया तुम्हारे पिता ने पिछले जन्म में मासिक धर्म के दौरान ही तुम्हारी माता के साथ संबंध बनाया था और इसी पाप के कारण इसे इस जन्म में बैल का रूप प्राप्त हुआ है
अब तुम्हारी माता के बारे में सुनो तुम्हारी माता ने रजस्वला होते हुए भी भोजन बनाया मासिक धर्म के दौरान ही इसने भगवान की पूजा की तुलसी को जल चढ़ाया रजस्वला होते हुए भी इसने भगवान को भोग लगाया इसी कारण से इसे महापाप लगा है
मासिक धर्म के दौरान स्त्री तीन दिनों के लिए अपवित्र हो जाती है
मासिक धर्म के दौरान स्त्री को पूजा पाठ नहीं करना चाहिए स्त्री को इन तीन दिनों में अपने बाल भी नहीं धोने चाहिए इससे पति की आयु कम होती है
मासिक धर्म के दौरान पेड़ पौधों को स्पर्श न करें रजस्वला स्त्री के साथ संबंध भी नहीं बनाना चाहिए
जो पुरुष रजस्वला के साथ संबंध बनाता है उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है जो रजस्वला के वस्त्रों को स्पर्श करता है उसे भी पाप लगता है रजस्वला स्त्री के शरीर में तीन दिनों तक ब्रह्महत्या का पाप निवास करता है और चौथे दिन ही वह स्नान करके पवित्र हो जाती है चौथे दिन स्नान करने के पश्चात
साथ रजस्वला स्त्री को अपने पति का मुख देखना चाहिए अन्य किसी पुरुष का मुख नहीं देखना चाहिए यदि पति समीप ना हो तो सूर्यदेव के दर्शन करने चाहिए गुरु वशिष्ठ कहते हैं हे ब्राह्मण इसी पाप के कारण तुम्हारे पिता को बैल और तुम्हारी माता को कुतिया का जन्म प्राप्त हुआ है
देव शर्मा कहता है हे मुनीश्वर अब आप मुझे मेरे माता पिता की मुक्ति के लिए उपाय बताइए वसिष्ठ जी कहते हैं हे ब्राह्मण तुम किसी भी अमावस्या के दिन अपने माता पिता की मुक्ति के लिए शाक्त तथा तर्पण करो और दान धर्म करो
गाय की सेवा करो और गौमाता को मिष्ठान्न खिलाओ और अपने माता पिता की मुक्ति के लिए भगवान से प्रार्थना करो फिर ब्राह्मण वहीं करता है और फिर उसके माता पिता को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है भगवान विष्णु माता लक्ष्मी से कहते हैं हे देवी मैंने तुम्हें रजस्वला स्त्री को कौन से कार्य नहीं करने चाहिए इस विषय में
बता दिया है अब मैं तुम्हें बताता हो किस कारण से स्त्री को मासिक धर्म से गुजरना पड़ता है सत्य युग में काल के नाम से प्रसिद्ध दानव हुआ करते थे
दानव होने के कारण उनका स्वभाव उग्र था और वे हमेशा ही युद्ध करने के लिए तत्पर रहते थे
फिर एक दिन सभी दानव वृत्रासुर के साथ मिलकर स्वर्ग लोक पर चढ़ाई करने लगे
उन असुरों के पास भयंकर शक्तिशाली अस्त्र थे जिसका देवता सामना न कर सके और भाग कर ब्रम्हदेव के पास चले गए
फिर ब्रह्मदेव ने उन्हें असुरों को परास्त करने का उपाय बताते हुए कहा हे इन्द्र तुम इसी क्षण महर्षि दधीचि के पास जाओ वे उनके शरीर की हड्डियों से तुम्हें अस्त्र शस्त्र प्रदान करेंगे उन्हीं अस्त्रों का प्रयोग करके तुम वृत्रासुर का वध कर सकोगे
फिर सभी देवता महर्षि दधीचि के आश्रम पर जाते हैं और उन्हें प्रार्थना करके अस्त्र प्रदान करने की विनती करते हैं
फिर संसार के कल्याण के लिए महर्षि दधीचि अपने शरीर की हड्डियों से अस्त्र शस्त्र निर्माण करते हैं उन्हीं में से एक वज्र नाम का असर होता है जिसे देवराज इंद्र धारण कर लेते हैं फिर सभी देवतागण वृत्रासुर के साथ युद्ध करने के लिए निकल जाते हैं देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध होता है सभी देवता आ
आकाश में दानवों से युद्ध के लिए एकत्रित हो जाते हैं और प्रहार करने लगते हैं अग्निदेव अग्नि के प्रहार से दैत्यों को दग्ध करने लगते हैं अग्नि के प्रभाव से दैत्यों का अंग अंग जलने लगता है
फ़िर वरुण देव जल की वर्षा से दैत्यों को डुबो देते हैं जिससे दैत्य त्राहि त्राहि करने लगते हैं
अनेक दिनों तक इस प्रकार से दैत्यों और देवताओं के बीच में भीषण युद्ध चलने लगता है फिर देवराज इंद्र और वृत्रासुर आमने सामने आ जाते हैं दोनों के बीच भीषण युद्ध होता है और फिर देवराज इंद्र अपने वज्र का प्रहार करके वृत्रासुर को मार डालते हैं उस दानव वृत्रासुर की
मृत्यु होते ही उसके शरीर से ब्रह्महत्या बाहर निकलती है और इंद्र का पीछा करने लगती है फिर वह ब्रह्महत्या इंद्र के शरीर में प्रवेश कर लेती है जिससे इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लगता है देवराज इंद्र ब्रह्मदेव के पास जाते हैं और उनसे ब्रह्महत्या से छुटकारा दिलाने के लिए कहते हैं
फिर ब्रह्मदेव उस ब्रह्महत्या को इंद्र के शरीर से निकलने की आज्ञा देते हैं और व ब्रह्महत्या इंद्र के शरीर से बाहर निकलकर ब्रह्मदेव से कहने लगती है है
परम पिता अभी तक में वृत्रासुर के शरीर में निवास कर रही थी क्योंकि उसने अनेक ब्रह्महत्या की थी जब इंद्र ने उसकी हत्या की तो में इंद्र के शरीर में वास करने लगी अब आप ही मुझे कोई उचित स्थान दीजिए जहां पर मैं रह सकूं
फिर ब्रह्मदेव कहते हैं ही ब्रह्महत्या मैं तुम्हें उचित स्थान देता हो
फिर ब्रह्मदेव ने ब्रह्महत्या के चार भाग किए और कहा है ब्रह्महत्या तुम्हारा एक चौथाई भाग अग्नि के भीतर रहेगा जो भी मनुष्य अग्नि को आहुति नहीं देगा तुम उसके शरीर में प्रवेश कर लेना तुम्हारा दूसरा एक चौथाई भाग जल के भीतर रहेगा जो भी जल में टूटेगा अथवा मल मूत्र
का त्याग करेगा तुम उसके शरीर में प्रवेश रोगी फिर तीसरा एक चौथाई भाई पेड़ पौधों और वृक्षों के भीतर रहेगा जो भी मनुष्य अकारण ही वृक्षों को काटेगा उसे भी ब्रह्महत्या का पाप लगेगा
फ़िर ब्रह्मदेव ने अप्सराओं को बुलाया और कहा हे अप्सराओं इस ब्रह्महत्या का एक चौथाई भाग तुम ग्रहण करो
अप्सराएं कहने लगी हे प्रभु आपकी आज्ञा से हम इसे ग्रहण करने के लिए तैयार है किन्तु हमें भी इससे मुक्ति का कोई उपाय बताइए
फिर ब्रह्मदेव कहने लगे हे अप्सराओं जो भी पुरुष रजस्वला स्त्री के साथ संबंध करेगा उसके अंदर यह ब्रह्महत्या प्रवेश कर जाएगी इस प्रकार से ब्रह्महत्या के चार भाग हुए एक अग्नि में दूसरा जल में तीसरा वृक्षों में और चौथा स्त्रियों के अंदर प्रवेश कर गया उसी ब्रह्महत्या
के भाग्य के कारण स्त्रियों को मासिक धर्म आता है
जो भी पुरुष मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को स्पर्श करता है अथवा उनके साथ संबंध बनाता है उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है
भगवान विष्णु कहते हैं हे देवी इस प्रकार से मैंने आपको स्त्री के रजस्वला होने के पीछे की कथा और रजस्वला स्त्री को कौन से कार्य नहीं करने चाहिए आदि के विषय में बता दिया है माँ लक्ष्मी कहती है
प्रभु आज आपने मुझे बहुत ही महत्वपूर्ण ज्ञान दिया है मैं भी आपको वचन देती हूं जो भी स्त्री मासिक धर्म के दौरान पूजा पाठ करेगी पति के साथ संबंध रखेगी उसके घर में में प्रवेश नहीं करूंगी
तो दोस्तों इस प्रकार से मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को यह कार्य नहीं करने चाहिए!
आपको यह कथा कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं
कमेंट में जय श्री हरी विष्णु अवश्य लिखें साथ ही प्रदीप मिश्रा जी चैनल को सब्सक्राइब अवस्य करें !