पति के साथ भोजन करने वाली औरते ये कथा जरूर पढ़े श्री कृष्ण क्या कहते है

Women who dine with their husbands must read this story. What does Shri Krishna say?


प्रदीप मिश्रा जी कथा में बताते है की , एक बार की बात है देवी सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण के पास आती है और उनसे पूछने लगती है हे स्वामी आज मेरे मन में शंका निर्माण हो रही है कृपया आप मेरी शंका का निवारण कीजिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं हे प्रिय तुम्हारे मन में जो भी शंका हो निसंकोच होकर पूछो तुम्हारी

हर शंका का निवारण करना मेरा कर्तव्य है तब देवी सत्यभामा बड़ी ही प्रसन्नता से पूछने लगती है हे प्रभु आपकी हम तीनों पत्नियां पहले आपको भोजन कराती है और फिर भोजन करती है नित्य आपकी सेवा करती है आपके चरण दबाती है किन्तु हे प्रभु क्या पत्नी को पति के साथ

अथवा पति से पहले भोजन करना चाहिए क्या ऐसा करना उचित होता है शास्त्र इस विषय में क्या कहते हैं

हे प्रभु ऐसा वह कौन सा पाप है जिसे करने से स्त्री नरकगामी बन जाती है कृपया आप मेरी इस शंका का समाधान कीजिए भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं हे सत्यभामा आज तुमने समस्त मानव जाति के कल्याण के उद्देश्य से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न किया है

हे देवी तुमने जो प्रश्न किया है उसका समाधान देवी सो देवा की कथा सुनने से प्राप्त हो जाएगा

देवी सत्यभामा कहती है हे प्रभु यह रानी सचदेवा कौन थी उनका आचार विचार कैसा था मेरे मन में उनके विषय में जानने की जिज्ञासा निर्माण हो रही है श्रीकृष्ण कहते हैं

हे सत्यभामा तुम्हारे आग्रह पर आज मैं तुम्हें रानी देवा की कथा सुनाता हूँ

तुम्हारी सभी शंकाओं का समाधान इस प्राचीन कथा में ही है

इस कथा में तुम्हें तुम्हारे सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे इसीलिए इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनो जो भी मनुष्य इस कथा को ध्यानपूर्वक सुनता है और इसका प्रचार करता है वह सौभाग्यशाली बनता है उसे कभी नरक की प्राप्ति नहीं होती है

फिर देवी सत्यभामा कहती है हे स्वामी ने इस कथा को अवश्य ध्यान पूर्वक सुनूंगी कृपया आप इस कथा को कहिए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं हे सत्यभामा फिर सुनो इस कथा को प्राचीन काल में अयोध्यापुरी में महाराज इक्ष्वाकु राज्य करते थे

वे धर्म का पालन करने वाले गुणवान चरित्रवान और अत्यंत कुशल सम्राट थे

उनका विवाह काशी नरेश की पुत्री स्व देवा के साथ हुआ था

देवा सत्य का व्रत पालन करने में तत्पर गुणवान चरित्रवान तथा महान पतिव्रता थी महाराज इक्ष्वाकु पुण्यात्मा थे उन्होंने अनेक यज्ञ तथा अनेक पुण्य के कार्य किए थे उन्होंने देवालय बनवाए पोखरे खुदवाए अनेक वाटिकाओं बनवाए तथा वे साधु संतों की रक्षा में सदैव

ही तत्पर रहते थे

महाराज इक्ष्वाकु के नगर के समीप एक घना जंगल था

उस जंगल में एक सुअर अपनी पत्नी और पुत्र पौत्रों के साथ रहा करता था वह सूअर बड़ा ही विशालकाय और भयंकर आकार वाला था जिससे सभी मनुष्य भयभीत रहते थे

उस सूअर के भय से मनुष्य उस बनकर मार्ग से जाने से डरने लगते थे

फिर जब यह बात महाराज इक्ष्वाकु को पता चली तो उन्होंने उस सूअर का शिकार करने का सोचा और फिर एक दिन महाराज अपनी पत्नी देवा तथा अनेक सैनिकों और कुत्तों को लेकर उस वन में शिकार करने के लिए चले गए महाराज बड़े पराक्रमी थे उन्होंने अनेक विशालकाय शेयरों का तथा राक्षसों का वध किया

था इसीलिए वे इस भयंकर सूअर से नगर वासियों की रक्षा करने के लिए उस वन में उस सूअर का शिकार करने के लिए आ गए जब उस भयंकर आकार वाले सूअर ने महाराज को वन की तरफ आता देखा तो वह सुअर अपनी पत्नी से कहने लगा हे प्रिय देखो यह कौशल देश के महान सम्राट

बाकू है वे महापराक्रमी और महा तेजस्वी है और वे इस वन में मेरी शिकार करने के लिए आ रहे हैं उनके साथ बहुत से कुत्ते और व्याध है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि वे मुझ पर ही प्रहार करेंगे महाराज बड़े पुण्यात्मा है यह राजाओं के भी राजा है समस्त विश्व इनके आधीन है

प्रिय मैं तुम सबकी रक्षा करने के लिए अपना पराक्रम दिखाता हुआ महाराज के साथ युद्ध करूंगा

अगर युद्ध में मैंने इनको पराजित कर दिया तो तीनों लोकों में मेरी कीर्ति हो जाएगी और यदि मैं इनके हाथ से मारा भी गया तो मुझे इस वर्ग के जन्म से छुटकारा मिलेगा और मैं विष्णु लोक को चला जाऊंगा

मेरे पिछले जन्म के पाप के कारण ही मुझे सूअर का जन्म प्राप्त हुआ है

हे प्रिय तुम मेरा मोह छोड़कर हमारे पुत्र और पौत्रों को लेकर पर्वत की गुफा में चली जाओ

अब समय आ गया है

कि मैं अपने पूर्व जन्मों के पापों से मुक्त हो जाओ जब महाराज के बाद मेरे शरीर को घायल कर देंगे तो एक एक बाढ़ से मेरे पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाएंगे

फिर उस सूअर की पत्नी बोलने लगती है ही नाथ हमारे बच्चे आपके ही पराक्रम और साहस के कारण इस वन में निर्भय होकर विचरण करते हैं कोमल कोमल फूलों का आहार ग्रहण करते हैं आप ही के कारण इन्हें शेर सीआर आदि जंगली जानवरों का भय नहीं है क्योंकि आप ही इनकी रक्षा करते हैं

आपके भीषण रूप को देखकर कोई भी शिकारी हमारी शिकार करने के लिए इस वन में नहीं आता है अगर आपकी मृत्यु हो जायेगी तो फिर मेरी और हमारे पुत्रों की रक्षा कौन करेगा

आपके बिना हम असहाय हो जाएंगे पति के बिना मेरा क्या होगा

उत्तम सवर्ण के गहने आभूषण वस्त्र पहनकर भी कोई भी स्त्री पति के बिना शोभा नहीं पाती है पति से ही स्त्री को सौंदर्य और शोभा प्राप्त होती है

आपके बिना मेरा जीवन भी नष्ट हो जाएगा हे नाथ ही प्राणी ईश्वर आपके बगैर में जीवित नहीं रह सकती हे नाथ ने सच सच कहती हूँ आपके साथ यदि मुझे नरक में भी डाल दिया जाए तो भी ने खुशी खुशी आपके साथ चली जाऊंगी इसीलिए आप महाराज के सामने मत जाइए आप भी

हमारे साथ पर्वत की टेंडर में चलिए हम वहीं छिपकर बैठ जाते हैं आप जीवन की इच्छा छोड़कर अपनी पत्नी और पुत्र को अकेला छोड़कर जा रहे हो इससे आपको क्या लाभ होगा फिर वह कहता है

हे प्रिय तुम वीरों के धर्म को नहीं जानती हो इसीलिए ऐसा कह रही हो यदि शत्रु वीरों को ललकारता है युद्ध के लिए निमंत्रण देता है तो वीर पुरुष को लोभ और भय से कायर की भांति ऐसे छिपकर नहीं भागना चाहिए ऐसे पुरुष को एक हजार युगों के लिए तुम भी पार्क नरक में

डालकर पकाया जाता है

वीर पुरुष अगर शत्रु का सामना करता है और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होता है तो उसे मृत्यु के बाद दिव्य लोक की प्राप्ति होती है आज महाराज इक्ष्वाकु हमारे पास युद्ध करने के लिए आए हैं वे हमारे अतिथि है और अतिथि का अनादर नहीं करना चाहिए अतिथि का अनादर साक्षात भगवान

विष्णु का अपमान होता है इसीलिए उनके साथ युद्ध करना मेरा कर्तव्य है

फिर वह सूअर की पत्नी बोलती है हे प्राणनाथ ठीक है

यदि आप महाराज के साथ युद्ध करना चाहते हैं तो मैं भी आपके साथ रहकर आपका पराक्रम देखूंगी

इतना कहकर उस सूअर की पत्नी ने अपने पुत्रों को बुलाकर कहा हे पुत्रों मेरी बात सुनो आज युद्ध भूमि में अतिथि आए हैं उनका सत्कार करने के लिए और उनसे युद्ध करने के लिए तुम्हारे पिता जा रहे हैं और उनके साथ ने भी जा रही हो इसीलिए तुम सभी अपने भाइयों को लेकर पर्वत की गुफा में जाता

छिप जाओ

महाराज इक्ष्वाकु बड़े बलवान है वे इस युद्ध में हमारा संहार कर डालेंगे इसीलिए तुम लोग यहां से भाग जाओ और अपने प्राण बचाव फिर वह सूअर के छोटे छोटे बच्चे बोलने लगे खेमा जो पुत्र अपने माता पिता को संकट में छोड़कर भाग जाते हैं वे महापापी होते हैं

उन्हें घोर नरक में डाला जाता है

जो निर्दयी पुत्र अपनी मां का दूध पीकर उसे दुख में छोड़कर भाग जाता है

जो पुत्र अपने बाप को विपत्ति में देखकर छोड़कर चला जाता है वह कीड़ों से भरे हुए दुर्गन्ध युक्त नरक में गिरता है इसीलिए खेमा हमलोग आपको छोड़कर नहीं जाएंगे फिर वह सूअर उसकी पत्नी और उसके बच्चे सभी युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं और युद्ध भूमि की ओर निकल पड़ते हैं

सभी छोटे छोटे सूअर अपने पिता और माता की चारों ओर से रक्षा करने लगते हैं उधर महाराज इक्ष्वाकु अपनी सेना के साथ उस स्थान पर आ जाते हैं और अपने सामने खडे सुअरों को देखकर बडे बडे शूर वीर योद्धाओं को सुअरों का शिकार करने के लिए आगे भेजते हैं वे सभी बलवान शूरवीर योद्धा

हाथ में तलवार और भाले लेकर सूअरों पर आक्रमण करने लगते हैं फिर सुधारों और राजा के सैनिकों के बीच भीषण युद्ध होता है सभी एक दूसरे पर भीषण प्रहार करने लगते हैं

सूअर अपने दांतों से सैनिकों को मारने लगते हैं तो सैनिक अपने बालों से सूअरों को मारने लगते है इस युद्ध में अनेक स्वर मर खप गए कितने ही घायल हुए और महाराज के अनेक सिपाही भी मर गए और घायल हुए अब केवल बहस व उसकी पत्नी और उसके कुछ पाँच सात पुत्र ही बचे थे अपने सभी पुत्रों को मरा हुआ देखकर सूअर की

इतनी भयभीत हो गई और अपने पति से कहने लगी हे नाथ मुझे और इन बालकों को लेकर यहां से चलो नहीं तो हमारा वंश नष्ट हो जाएगा

कृपया हम सभी अपने प्राण बचाकर भाग चलते हैं

नहीं तो महाराज हम सभी को मार डालेंगे फिर सूअर कहने लगता है थे प्रिय दो शेरों के बीच में एक सूअर पानी पी सकता है लेकिन दो सूअरों के बीच में एक शेर पानी नहीं पी सकता सूअर जाति में ऐसा बल देखा जाता है इसी कारण से स्वर से सभी भयभीत हो जाते हैं अगर इस समय पर मेमरी

ट्यूब के भय से भाग जाऊंगा तो मेरे सूअर जाति की प्रसिद्ध नष्ट हो जायेगी

इसीलिए है प्रिय तुम हमारे बच्चों को लेकर यहां से चली जाओ और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करो

सुनकर सूअर की पत्नी बोली हे नाथ ने आप से बहुत प्रेम करती हो

आपने मेरा आदर सम्मान करके रति क्रिया करके और मेरी रक्षा करके मेरे मन को जीत लिया है आपसे मेरा मोहक कभी नहीं छूटेगा

इसीलिए मैं अपने पुत्रों के साथ आपके सामने ही प्राण त्याग दूंगी किन्तु आपको अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगी फिर वह सूअर और उसकी पत्नी दोनों ही महाराज से युद्ध करने के लिए आगे आते हैं वह सूअर भयंकर गर्जना करता हुआ महाराज को युद्ध के लिए ललकारता है वह सूअर उसके सामने आए

बड़े बड़े वीर योद्धाओं को अपने दांतों से तिनके की भांति उठाकर फेंक में लगता है

अपने सैनिकों को मरता हुआ देखकर महाराज को क्रोध आ जाता है और वे अपना धनुष निकालकर उस पर बड़े वेग से आक्रमण करते हैं

महाराज का एक बार तीव्र गति से जाकर उस वर्ग के शरीर में घुस जाता है और वह सुअर जमीन पर गिर जाता है फिर महाराज उस पर प्रहार करते हैं और सूअर को मार डालते हैं सूअर के मरते ही उसके प्राण निकलते हैं और विष्णु लोक को चले जाते हैं फिर महाराज के सैनिक अपने हाथ में भाले लेकर उस वर्ग की पत्नी को मा

करने के लिए उसकी ओर जाने लगते हैं सुअर की पत्नी अपने बच्चों के सामने खड़ी हो जाती है और बच्चों से कहती है बच्चों ने जब तक यहां पर खड़ी हो तुम यहाँ से भाग जाओ सूअर का बड़ा बेटा बोलता है हे माता अपने प्राणों के भय से मैं आपको मरने के लिए छोड़कर कैसे भाग जाऊं अगर मैं

ऐसा करो तो मुझ पर धिक्कार है मैं युद्ध में शत्रु को परास्त करूँगा तुम अपने पुत्रों को लेकर यहां से चली जाओ

फिर वह सूअर की पत्नी बोली हे मेरे पुत्र ने महापापी ने तुझे अकेला छोड़कर कैसे चली जाओ इतने में ही राजा के सैनिक उन सूअरों के पास आते हैं और उन पर प्रहार करने लगते हैं

सूअर का बड़ा बेटा भयंकर युद्ध करता है और अनेक सैनिकों को मार गिराता है तब महाराज आगे आकर उस सूअर के बड़े बेटे को भी मार डालते हैं अपने पुत्र को मरा हुआ देखकर सूअर की पत्नी बहुत क्रोधित हो जाती है और भीषण प्रहार करने लगती है उसने भी अनेक सैनिकों को मार डाला

इस घटना को महारानी सु देवा देख रही थी तब वह महाराज से कहती है हे महाराज उस स्वर की पत्नी आपके सैनिकों को मार रही है आप आगे चलकर उसका वध क्यों नहीं करते महाराज कहते हैं हे प्रिय यह एक स्त्री है मेरा यह वचन है कि मैं स्त्री का वध नहीं करूंगा स्त्री का वध करने

से महापाप लगता है इसीलिए मैं उस सूअर की पत्नी को न खुद मार रहा हो और न किसी को उसे मारने के लिए भेज रहा हूं

मुझे स्त्री का वध करने में बड़ा भय लगता है

इतना कहकर महाराज चुप हो गए

फिर महाराज की सेना में भार्गव नाम का एक बलवान सिपाही था उसने उस सूअर की पत्नी पर प्रहार किया और उसे जमीन पर गिरा दिया सूअर की पत्नी मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ी और लम्बी लम्बी सांसे लेने लगी जब रानी देवा ने उस ध्वनि को धरती पर बेहोश अवस्था में देखा तो उन्हें उस हुआ

नहीं पर बड़ी दया आ गई उन्होंने ठंडा जल उस ध्वनि के मुख में डाला और फिर उसके सारे शरीर पर डाल दिया जिससे उस ध्वनि को होश आया स्वामी ने रानी को उस पर शीतल जल डालते हुए देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुई और मनुष्य की वाणी में बोलने लगी हे देवी तुमने मुझ पर ठंडा

डालकर मुझे कष्ट से मुक्ति दिलाई है तुम्हारा कल्याण हो स्वर्ण के ऐसे वचन सुनकर रानी सचदेवा को बड़ा आश्चर्य हुआ वह सोचने लगी ये तो आज मैंने बड़ी विचित्र बात देखी यह स्वर्णिम तो मनुष्य की वाणी ने सुंदर अस्पष्ट संस्कृत बोल रही है

फ़िर रानी ने उस ध्वनि से कहा हे भद्रे तुम कौन हो तुम्हारा बढ़ता विचित्र है पशु होकर भी तो मनुष्य की वाणी में बोल रही हो तुम मुझे तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाओ

किस कारण से तुम स्वर्णिम बनी हो फिर वह स्वर्ण कहने लगती है हे देवी मेरे पति ने पिछले जन्म में गुरुजनों का अपमान किया था इसी कारण से उन्हें सूअर का जन्म प्राप्त हुआ है

अब में आपको मेरे पूर्व जन्म की कहानी बताती हूँ

हे देवी कलिंग नाम के देश में श्रीपुर नाम का एक सुंदर नगर था उस नगर में बदसूरत नाम के विद्वान ब्राह्मण रहते थे

ने उसी वस्तु दत्त ब्राह्मण की पुत्री थी उन्होंने मेरा नाम सुकन्या रखा था उस समय उस नगर में मेरे जितनी सुंदर स्त्री कोई और नहीं थी अपने सौंदर्य और रूप के घमंड में ने उन्मत्त हो गई थी मेरी मुस्कान बड़ी मनोहर थी जब ने जवान हुई तो मेरा सुंदर रूप और जवानी देखकर मेरी

माता को बड़ा भय लगने लगा मेरे पिता से कहने लगी हे नाथ अपनी कन्या जवान हो चुकी है उसका विवाह क्यों नहीं करते थे इसे शीघ्र ही किसी बार को सौंप दीजिए फिर वह ब्राह्मण बोला हे कल्याणी मैं अपनी पुत्री का विवाह उसी पुरुष के साथ करूंगा जो विवाह के

बाद मेरे ही घर में निवास करेगा

सुकन्या मुझे बड़ी प्रिय है

मैं इसे अपनी आंखों से दूर नहीं होने देना चाहता फिर एक दिन शिव शर्मा नाम के जवान विद्वान ब्राह्मण मेरे द्वार पर आ गए

मेरे पिता उसके ज्ञान और कुशलता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उसे मुझसे विवाह करने के लिए पूछ लिया फिर मेरे पिता ने उस शिव शर्मा ब्राह्मण से मेरा विवाह कर दिया और वे हमारे साथ ही हमारे घर पर रहने लगे परन्तु मैं अपने माता पिता के लाड प्यार से बिखर चुकी थी अपनी विवेक शक्ति खो चुकी थी

मैंने कभी अपने पति की सेवा नहीं की कभी उनके चरण स्पर्श नहीं किए में सदा उन्हें क्रूर दृष्टि से देखती थी उनका अपमान करती थी उन्हें नाम लेकर पुकारती थी उनके भोजन से पहले भोजन कर लेती थी ने अपने पति से ही खुद को भोजन परोसा लेती थी ने अपनी मर्जी से स्वच्छंद होकर

यहां वहां घूमने लगती थी और बात बात पर अपने पति का अपमान करती थी

मैंने उनके साथ कभी सहवास भी नहीं किया उन्हें मेरे शरीर को कभी हाथ भी लगाने नहीं दिया शिव शर्मा बहुत ही शांत स्वभाव के थे उन्होंने मुझे अनेक दिनों तक सहन किया और फिर एक दिन वे अत्यंत दुखी होकर मुझे छोड़कर चले गए

मेरे पति के जाते ही मेरे पिता बहुत दुखी होकर कहने लगे हे प्रिय सुनो हमारे दामाद हमारी पुत्री को छोड़कर चले गए हैं

हमारी पुत्री ही पाप चारे में भी दामाद तो विद्वान थे

मैं क्या जानता था कि हमारी पुत्री सुकन्या दोस्त और कुल नाशिनी होगी फिर मेरी माता बोली हे नाथ हमारी पुत्री आप ही के लाड प्यार से बिखर गई है इसे सही राह पर लाने के लिए आपको ही कुछ करना होगा पिता के घर में रहने वाली कन्या दुराचारी बन जाती है इसीलिए कन्या को कभी घर

में नहीं रखना चाहिए उसे उसके पति के पास ही रखना चाहिए

हमारी कन्या बहुत दुष्ट और पापिनी है आप इसका त्याग करके इसे इसके पति के पास भेज दीजिए

इस प्रकार से माता के वचन सुनकर मेरे पिता बहुत क्रोधित हुए और मुझे कहने लगे थे दुष्टा हमारे कुल में कलंक लगाने वाली दुराचार नहीं तेरे ही कारण शिव शर्मा हम सबको छोड़कर चले गए

इसीलिए तेरा पति जहां पर है तो वहीं पर चली जाए अथवा तुझे जो स्थान अच्छा लगे वहां पर चली जा फिर में अपने घर को छोड़कर चली गई बाहर जाने पर मुझे लोग कुलटा पापिनी दुराचारी कहकर संबोधन करने लगे इसीलिए ने अपने पति को ढूंढते हुए बन चली गई

फिर एक दिन बनने ने एक कुटिया के सामने जाकर खड़ी हो गई और भिक्षा मांगने लगी वहां पर उस कुतिया में रहने वाली मंगला नाम की स्त्री ने मुझे देखकर अपने पति से कहा हे स्वामी द्वार पर एक दुखिया दुबली पतली स्त्री भिक्षा मांगने के लिए आई है

मंगला का पति शिव शर्मा ही था जिन्होंने मेरा क्या किया था

मुझे देखकर उन्होंने मुझे पहचान लिया और अपनी पत्नी से कहने लगे थे प्रिय है

यह मेरी पहली पत्नी सुकन्या है जो मुझे बहुत प्रिय थी इसीलिए तुम इसका आदर सत्कार करो

और इसे अपने घर में स्थान दो फिर मंगला ने अपने पति की आज्ञा का पालन करते हुए मुझे घर के अंदर बुला लिया और मुझे पहनने के लिए वस्त्र दिए फिर एक दिन में बैठकर मंगला के अच्छे स्वभाव का और मेरे दुष्ट स्वभाव का विचार करने लगी और मुझे बड़ा दुख होने लगा

अधिक चिंता करने के कारण मेरा हृदय फट गया और उसी क्षण मेरी मृत्यु हो गई फिर यम के दो दूध उस स्थान पर आ गए और मुझे उठाकर यमलोक ले गए

वहां पर यमराज ने मेरा लेखा जोखा देखा और यमदूतों से कहा हे दूतों इस पापिनी स्त्री ने अपने पति का बहुत अपमान किया है यह पति से पहले ही भोजन कर लेती थी अपने पति को नाम से बुलाती थी उसे घर के काम करवाती थी इसीलिए इस पापी स्त्री को ले जाकर नरक में डाल दो फिर यम

दूध मुझे नरक में ले गए और उन्होंने मुझे जलते हुए अंगारे में डाल दिया लोहे के चलते हुए पुरुष बनाकर मुझे उन्हें आलिंगन दिलवाया वह नरक ने मुझे अनेक वर्षों तक कष्ट भोगने पड़े

फ़िर नरक की सजा भुगतने के बाद यमराज ने मुझे सुवर्ण के जन्म में डाल दिया स्वर्ण बोली हे देवी इस प्रकार से मैंने आपको मेरे पूर्व जन्म का वृतांत सुना दिया है कृपया अब मुझे इस जीवन से मुक्ति दिला दो आपने अपने पति की बहुत सेवा की है इसीलिए मुझे आपका थोड़ा सा पुन

प्रदान करो फिर रानी देवा महाराज से कहती है हे स्वामी अब मैं क्या करूं आप जो आज्ञा देंगे मैं वही करूंगी

महाराज इक्ष्वाकु कहते हैं हे प्रिय यह बेचारी बहुत दुख उठा रही है तुम अपने पुण्य से इसका उद्धार करो

महाराज की आज्ञा लेकर रानी सुधरवाने सुरमई से कहा हे देवी मैं अपने एक वर्ष का पुण्य तुम्हें प्रदान करती हो

पानी के इतना कहते ही उस ध्वनि के प्राण चले गए और उसके शरीर से एक दिव्य स्त्री प्रकट हुई और फिर वह महारानी और महाराज को नमस्कार करके विष्णु लोक को जाने लगी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं है सत्यभामा इस प्रकार से मैंने तुम्हें यह महान कथा सुनाई है तुम्हें तुम्हारे सभी प्रश्नों

के उत्तर भी मिल गए होंगे

देवी सत्यभामा कहती है है स्वामी आपने आज मुझे बहुत ही पवित्र कथा सुनाई है और मेरी सभी शंकाओं का निवारण भी किया है

तो दोस्तों उम्मीद है आपको भी यह कथा पसंद आई होगी तथा कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं


यह कथा अच्छी लगी तो कमेंट में जय श्री कृष्ण अवश्य लिखें साथ ही हमारे चैनल  प्रदीप मिश्रा जी को सब्सक्राइब  जरुर करें!



Ramprasad Patel

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