प्रिय भक्तो आपकी शादी हो गई है, या भविष्य में होगी और यदि आपको दूसरी स्त्री के साथ संबंध बनाना चाहते हैं तो बना सकते हैं, प्रिय भक्तो आज की इस कलियुग में शर्म आती है लोगों के पास फालतू की वीडियो देखने का समय है, परन्तु आज हम आपको देवर्षि नारद और यमराज के बीच की प्रेरणात्मक कथा सुनाने जा रही हैं
प्रिय भक्तो पत्नी के अलावा इस एक स्त्री से संबंध रखना पाप नहीं होता है प्रिय भक्तो शास्त्रों के अनुसार कोई भी पुरुष पत्नी के अलावा इस एक स्त्री से शारीरिक संबंध बना सकता है प्रिय भक्तो एक बार देवर्षि नारद नारायण नारायण का जाप करते हुए अंतरिक्ष के मार्ग से यमलोक पहुँच जाते हैं
प्रिय भक्तो जब तीनो लोको के देवता यमराज विशाल का सिंहासन पर विराजमान होते हैं, उनके पास चित्रगुप्त बैठे हुए होते हैं तभी देवर्षि नारद उस स्थान पर पहुँच जाते हैं देवर्षि नारद को आता देख यमराज उनका स्वागत करते हैं और उन्हें प्रणाम करते हुए कहने लगता है प्रिय भक्तो जी आपके आगमन से यमपुरी
धनिया हुई है देवर्षि नारद कहते हैं है मृत्यु और न्याय के देवता यमराज आपको प्रणाम है यमराज कहते हैं अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण कारण होगा कृपया आप हमें बताने की कृपा करें कि आप किस प्रयोजन से आज यमपुरी आए हैं तब नारद जी कहते हैं हे धर्मराज आप मृत्यु और न्याय के देवता हैं तीनों लोकों के प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार दंड देने का
कार्य आप करते हैं आपके पास समस्त प्राणियों और चारों दिशाओं का लेखा जोखा रखा हुआ है पापी मनुष्यों को आप नरक में डालते हैं और कौन जवान मनुष्य को आप स्वर्ग में भेजते हैं इसीलिए आपको मनुष्यों के सभी पाप और पुण्य कर्मों का ज्ञान है मैं आपके पास एक विचित्र प्रश्न लेकर आया हूँ प्रिय भक्तो कृपया आप मेरे इस प्रश्न का उत्तर दें फिर यमराज
कहते हैं है देवर्षि आप सत्य कहते हैं प्रिय भक्तो हमारे पास तीनों लोकों के प्राणियों का लेखा जोखा रखा हुआ है क्योंकि प्रभु ने हमें यही कार्य सौंपा है प्रिय भक्तो हम प्रभु के आदेश से ही मनुष्य के पाप और पुण्य कर्मों के आधार पर उन्हें दंड देते हैं आपके मन में जो भी प्रश्न अथवा शंका है आप निसंकोच होकर पूछिए हम अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनका समाधान अवश्य करने का प्रयास करेंगे प्रिय भक्तो तब वे देवर्षि कहते हैं यमराज शास्त्र कहते हैं कि एक पुरुष को केवल, एक ही स्त्री से विवाह करना चाहिए, एक ही स्त्री से संबंध बनाना चाहिए, किन्तु मैंने यह भी देखा है कि कुछ मनुष्य अनेक विवाह करते हैं अनेक स्त्रियों से संबंध रखते हैं क्या यह पाप नहीं है?
क्या ऐसे मनुष्यों को नरक में डाला जाता है
इस पर शास्त्र क्या कहते हैं?
क्या कोई मनुष्य अनेक स्त्रियों से विवाह कर सकता है
कृपया आप मेरी इस शंका को दूर करें यमराज कहने लगते हैं कि देवऋषि आपने समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए उचित ही प्रश्न किया है
प्रिय भक्तो हम आज के इस युग की बात करें तो जब पति पत्नी एक दूसरे की शादी के बंधन में बंध जाते हैं और एक साथ रहने की कसम खाते हैं
प्रिय भक्तो यह कसम आज के इस आधुनिक जमाने में हर कोई पंडित के सामने लेता ही है
परंतु आज की इस जमाने में कसम जो एक दूसरे के पति पत्नी के समय शादी के समय ली जाती है
वह एकमात्र कसम ही रह गई है
क्योंकि प्रिय भक्तो शादी हो जाने के बाद एक ही पत्नी के साथ कई बार संभोग करने के बाद या सेक्स करने के बाद पुरुष बोर हो जाता है और दूसरी पत्नी की तरह नजर लगाना शुरू कर देता है
और आज की इस जमाने में हर एक पुरुष शादीशुदा बस यही फर्क नहीं घूमता रहता है कि इस औरत से और संबंध बना लो फिर सोचता है एक और और अच्छे संबंध बना दो ऐसे करते करते उसका मन किसी भी औरत के साथ नहीं लगता है बस उसके मन में एक नई नई औरतों के साथ हवस बुझाने का ही मन बना रहता है
परंतु प्रिय भक्तो एक ही स्त्री ऐसी होती है कि अगर आप उसके साथ पत्नी के होते हुए भी संबंध बनाते हैं शारीरिक या सेक्स करते हैं तो प्रिय भक्तो शास्त्रों के अनुसार आपको पाप नहीं लगेगा
प्रिय भक्तो संसार में मनुष्य एक से अधिक विवाह कर सकता है या नहीं इसका उत्तर देने से पूर्व मैं आपको एक कथा सुनाता हूँ इस महान कथा में आपको सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे इसलिए आप इस कथा को ध्यान से जरूर सुनी जो भी इस कथा को ध्यान से सुनता है मैं उसके बत्तीस अपराध माफ करता हूँ फिर नारद जी कहते हैं हे धर्मराज आप उस कथा को
कहिए में उसे ध्यान से कूड़ा सुनूंगा तब यमराज नारद जी को वह महान कथा सुनाते हैं प्राचीन काल की बात है मध्य देश में एक अत्यंत शोभा इनाम नगरी थी उस नगरी के एक अत्यंत गुणवान बलवान और रूपवान राजा थे जिनका नाम था धर्मपाल महाराज धर्मपाल एक न्यायप्रिय राजा थे उनकी प्रजा उनके न्याय से अत्यंत संतुष्ट रहा करती थी
राजा भी अपनी प्रजा का अच्छी तरह से देखभाल करते हैं प्रजा का सभी जूतों का अच्छी तरह से ध्यान रखते थे महाराजा की सुकन्या नाम की पत्नी थी जो अत्यंत सुंदर गुणवान चरित्रवान और पतिव्रता नारी थी महाराज धर्मपाल और रानी सुकन्या बहुत ही दयालु स्वभाव के थे वे हर प्रकार के यज्ञ दान धर्म तथा अनुष्ठान किया करते थे उनके साम्राज्य में सब कुछ था
किंतु केवल एक कारण से महाराज महारानी और प्रजा दुखी रहते थे महाराज को कोई संतान नहीं थी जिससे महाराज दुखी और चिंता में रहते थे प्रजा को भी महाराज की ऐसी दशा अच्छी नहीं जा रही थी कितने ही प्रयास करने पर भी महाराज इसको कोई संतान नहीं हो रही थी महाराज ने अनेक वैद्य बुलाएं अनेक पुत्र प्रताप के उपाय किया दान धर्म किया व्रत
किन्तु उन्हें किसी भी उपाय से संतुष्टि नहीं मिली फिर एक दिन प्रजाजन महाराज के पास आते हैं और कहते हैं महाराज आप पुत्र प्रताप के लिए दूसरा विवाह करें किन्तु महाराज अपनी प्रजा की बात से सहमत नहीं होते महाराज रानी सुकन्या से बहुत प्रेम करते थे इसीलिए वे अपनी पत्नी का दिल नहीं दुखाना चाहते थे तथा महाराज शास्त्रों का भी
रखते थे
की एक पुरुष को केवल एक ही स्त्री के प्रति एक नष्ट रहना चाहिए प्रिय भक्तो एक पत्नी के होते हुए कभी दूसरी स्त्री के पास नहीं जाना चाहिए जिस प्रकार से एक मादा पशु के साथ डोनर पशु नहीं रह सकते ठीक उसी प्रकार से एक पुरुष के साथ दो स्त्रियों कभी सुखी नहीं रह सकती प्रिय भक्तो जो पुरुष एक पत्नी होते हुए भी दूसरी स्त्री से संबंध रखता है वह घोर पाप करता है
है और नरक में ही गिरता है इसी कारण से महाराज दूसरा विवाह नहीं करना चाहते थे फिर प्रजनन महारानी के पास जाकर उनसे आग्रह करते हैं कि वे महाराज को दूसरा विवाह करने के लिए मनाएं तब रानी सुकन्या भी प्रजा के दुख समझती है और महाराज के पास आकर कहने लगती है स्वामी आप कृपया दूसरा विवाह कर लीजिए हमारे राज्य को भविष्य में
एक राजा की आवश्यकता पड सकती है फिर महाराज रानी को भी मना करते हैं और कहते हैं एक यदि में दूसरा विवाह भी कर लूंगा तो में पाप का भागी बन जाऊंगा मुझे नरक में ही जाना पडेगा और तुम बताओ क्या तुम मेरे दूसरे विवाह से खुश रह पाओगी
तब रानी कहती है स्वामी आपकी खुशी में ही मेरी खुशी है मैं मेरी सौतन को अपनी बहन मानकर प्यार दूंगी कृपया आप संकोच न करें मुझे इससे क्षण मात्र भी दुख नहीं होगा में आपको विवाह के लिए सहमति देती हूँ तब महाराज कहते हैं कि देवी किन्तु मुझे उस पाप से कौन बचाएगा जो एक स्त्री के होते हुए भी दूसरी स्त्री के साथ संबंध रखना से मिलता है
इस पाप से कोई मुक्ति नहीं है में ऐसा घर अनर्थ नहीं करना चाहता उधर स्वर्ग लोक से महाराज के सभी पूर्वज इस घटनाक्रम को देख रहे होते हैं वे अपने पुत्र के ऐसे व्यवहार से अत् यंत दुखी हो जाते हैं यदि महाराज को पुत्र नहीं होगा तो कुल का विनाश हो जाएगा इसी भाई से सभी पूर्वज बहुत दुखी हो जाते हैं फिर एक दिन सभी पूर्वज महाराज के साथ
ने में आकर उन्हें दर्शन देते हैं और कहते हैं एक पुत्र तुम्हारे कारण हमारी दुर्गति हो रही है हमारे कोई का विनाश हो रहा है तब महाराज अपने पूर्वजों से कहते हैं कि महात्मा मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है जो आप सभी इतने दुखी हुए हैं आपकी आत्मा की शांति के लिए जो भी उपाय हो हमें अवश्य ही करूंगा तभी वे पूर्वज कहने लगते हैं
के पुत्र हमारी मुक् ति का एक ही उपाय है वह है तुम्हारी सन्तान यदि तुम पुत्र को जन्म नहीं दोगे तो तुम्हारे साथ साथ हमें भी नरक में जाना पडेगा हमारा संपूर्ण कुल और वंश नष्ट हो जाएगा इसीलिए है पुत्र हम तुमसे विनती करते हैं कि तुम दूसरा विवाह करो पुत्र के बिना मनुष्य को सद्गति प्राप्त नहीं होती है पुत्र ही अपने माता पिता का उद्धार करता है
उन्हें मोक्ष दिलाता है जब वह श्राद्ध करता है तो हमारे पाप नष्ट हो जाते हैं जब वह पृथ्वी लोक पर दान धर्म करता है तो हमें स्वर्ग लोक में भोजन की प्राप्ति होती है इसीलिए ही पुत्र तुम शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति के लिए कोई उपाय करो अपने पितरों की बात सुनकर भी महाराज दूसरा विवाह करने के लिए तैयार नहीं होते हैं फिर सभी मित्रगण दुखी होगा
यमराज के पास जाते हैं और उनसे विनती करते हुए कहते हैं हे धर्मराज कृपया हमारे कुल की रक्षा कीजिए हमारी पुत्र की कोई संतान नहीं है और संतान के बिना हमारा कोई नष्ट हो जाएगा कृपया आप हमारे पुत्र को दूसरा विवाह करने की आज्ञा दें फिर यमराज कहते हैं महात्माओं में अवश्य ही तुम्हारे पुत्र को समझाऊंगा और उसे पुत्र प्राप्त करने के लिए प्रेरित
करूंगा ऐसा कर यमराज पृथ्वी लोक पर आते हैं
और है
पति रख लें
प्रिय भक्तो बोलो जय जय बजरंगबली की जय हो जय बजरंगबली जी जो भी भक्त इस वीडियो को देख रहा है उसके घर में सुख समृद्धि आए उसके घर में कोई भी परेशानी नहीं आए
और पूरा परिवार सुख शांति से अपना जीवन यापन करें प्रिय भक्तो अगर तुम में से कोई जय जय बजरंगबली जी को मानता है तो अगर सच में ही भक्त हैं आप इस वीडियो को लाइक कर नीचे कमेंट बॉक्स में एक बार जय जय बजरंगबली लिख देना
बजरंगबली जी जो भी भक्त कमेंट बॉक्स में जय जय बजरंगबली लिखता है तो उसके मन में जो भी मनोकामना है वह पूरी कर देना प्रिय भक्तो कहानी को आगे बढ़ते हुए जब यमराज पृथ्वी लोक पर आते हैं और एक साधु का रूप धारण करके महाराजा धर्मपाल के दरबार में जाते हैं उन साधु को देखकर महाराज धर्मपाल अत्यंत प्रसन्न होते हैं और
उनका आदर सत्कार करते उनसे पूछते हैं महात्मा आप कौन हैं किस प्रयोजन से आप हमारे इस राज्य में पधारे हैं आपके मुखमंडल का देश देखकर यह प्रतीत होता है कि आप अवश्य ही कोई बड़े तपस्वी है तब वह साधु उस राजा से कहते हैं
मैं साक्षात यमराज हूँ तुम्हारे पूर्वजों के द्वारा प्रार्थना करने पर ही में स्वयं तुमसे मिलने के लिए आया हूं वह साधु महाराज से कहते हैं
तुमने अपने पूर्वजों को ध्वस्त कर दिया है जिससे तुम्हारा सारा साम्राज्य नष्ट हो जाएगा पुत्र के बिना तुम्हारी दुर्गति हो जाएगी तुम्हें कभी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति के लिए पुत्र को जन्म अवश्य देना चाहिए फिर महाराज कहते हैं हे धर्मराज में विवश हूँ में दूसरा विवाह करके पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता इससे अच्छा है
कि में पुत्रहीन होकर जीवन व्यतीत करो यमराज कहते हैं बस तुम्हारी न्याय प्रिय आचरण से और अपनी पत्नी के प्रति एक निष्ठा को देखकर में अत्यंत प्रसन्न हूँ किन्तु है धर्मपाल एक मनुष्य दूसरा विवाह अवश्य कर सकता है इसमें कोई पाप नहीं है यदि किसी पुरुष की पत्नी उसके दूसरे विवाह के लिए सहमति दे दी है तो वह पुरुष दूसरा विवाह निश्चित
ठीक कर सकता है इसमें कोई पाप नहीं है प्रिय भक्तो शास्त्र कहते हैं कि यदि एक पत्नी से पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है और उसकी पत्नी उसे दूसरा विवाह करने की अनुमति देती है तो उसे दूसरा विवाह करने में संकोच नहीं करना चाहिए साक्षात यमराज के द्वारा ऐसे वचन सुनकर महाराज अति प्रश्न हो जाते हैं और यमराज को धन्यवाद देते हैं
फिर यमराज उस स्थान से अंतर्ध्यान हो जाते हैं महाराज धर्मपाल अपनी पत्नी सुकन्या के पास जाते हैं और उससे दूसरा विवाह करने की अनुमति मांगते हैं तो महारानी सुकन्या उन्हें दूसरा विवाह करने की अनुमति दे देती है तब महाराज दूसरी स्त्री से विवाह कर लेते हैं जिससे उन्हें सुंदर पुत्र रत्न की प्रताप होती है और उधर स्वर्ग लोक में सभी पूर्वज भी आना
विदित हो जाते हैं प्रिय भक्तो शास्त्रों पुराणों में बताया गया है कि मनुष्य धरती पर रहकर जो भी अच्छे या बुरे कर्म करते हैं उन सभी कर्मों का लेखा जोखा मृत्यु के बाद होता है और उसके अनुसार सजा और पुनर्जन्म मिलता है
ईश्वर की दृष्टि में जो अच्छे काम यानी आपके काम होते हैं उसे पुनः कहा जाता है और जो बुरे कर्म होते हैं उन्हें पाप कहा जाता है
पुराणों में कई अच्छे और बुरे कामों के बारे में बताया गया है
गरुड़ पुराण और कठोपनिषद में तो यह भी बताया गया है कि मनुष्य को अपने पाप कर्मों के कारण मृत्यु के बाद अलग अलग तरह के पापों के लिए कौन कौन सी अलग सजाएं दी जाती है
गरुड़ पुराण में उल्लेख मिलता है कि मनुष्य धरती पर जो कुछ भी पाप करता है उन सभी पापों की अलग अलग सजा बारी बारी से मिलती है
के न्याय में किसी भी पाप की सजा से बचा नहीं जा सकता है
प्रिय भक्तो गरुण पुराण में बताया गया है कि पर स्त्री पुरुष संबंध रखने वाले को लोहे की गर्म सलाखों को आलिंगन करवाया जाता है
जो पुरुष अपने गोत्र की स्त्री से संबंध बनाता है उसे नरक की यातना होकर लकड़बग्घा अथवा शाही के रूप में जन्म लेना पड़ता है
प्रिय भक्तो कुंवारी अथवा अल्पायु कन्या से संबंध बनाने वाले को न की घोर यातना सहने के बाद अजगर योनि में आकर जन्म लेना पड़ता है
जो व्यक्ति काम भावना से पीड़ित होकर गुरु की पत्नी का मान भंग करता है ऐसा व्यक्ति वर्षों तक नरक की यातना सहने के बाद गिरगिट की योनी में जन्म लेता है
प्रिय भक्तो मित्र के साथ विश्वासघात करके उसकी पत्नी से संबंध बनाने वाले को यमराज गधा की योनी में जन्म देते हैं
लेकिन व्यभिचार और धोखा देने से भी बड़ा पाप है जिसकी सजा कठोर है
महाभारत के समय एक व्यक्ति ने ऐसा पाप किया था लेकिन आजकल बहुत से लोग ऐसे पाप करने लगे हैं जानिए आप क्या है और इसकी सजा क्या है
प्रिय भक्तो भगवान श्रीकृष्ण ने दृष्टि में जो सबसे बड़ा पाप है वह है भ्रूण हत्या महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद जब द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक परीक्षित पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके उसकी हत्या कर दी तब भगवान श्रीकृष्ण सबसे अधिक क्रोधित हुए था
प्रिय भक्तो श्रीकृष्ण ने उस समय समय ही यह घोषणा कर दी थी कि अश्वत्थामा का पाप सबसे बड़ा पाप है क्योंकि उसने एक अजनबी बालक की हत्या की थी
श्रीकृष्ण ने इस पाप की सजा व या अश्वत्थामा को दी थी
प्रिय भक्तो श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के सिर पर लगा चिंतामणी रत्न छीन लिया और शाप दिया कि तुमने जन्म तो देखा है लेकिन मृत्यु को नहीं देख पाओगे यानी जब तक सृष्टि रहेगी तुम धरती पर जीवित रहोगे और कष्ट प्राप्त करोगे
प्रिय भक्तो भ्रूण की हत्या करने वाले के लिए सबसे कठोर सजा निर्धारित है और ऐसे व्यक्ति को कई युगों तक इस सजा का दंड भुगतना पड़ता है
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अपने गोत्र की महिला के साथ यौन संबंध बनाने वाला पुरुष अगले जन्म में लकड़बग्घा बनता है
साथ ही कहा जाता है कि अपने गोत्र की लड़की से विवाह करने पर होने वाली संतान आमतौर पर मानसिक रूप से कमजोर विकलांग या पूरी तरह अक्षम हो सकती है
गरुड़ पुराण को सनातन धर्म में महापुराण की संज्ञा दी गई है इसके जरिए लोगों को बुरे कर्मों को छोड़कर बेहतर जीवन बनाने के लिए धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया गया है गरुड़ पुराण में सही और गलत कर्मों की व्याख्या भी की गई है और उनके आधार पर यह बताया गया है कि किस बात के लिए व्यक्ति को मृत्यु के बाद कौन सी सजा मिलती है गरुड़ पुराण में मृत्यू
के बाद कर्मों के आधार पर स्वर्ग और नर्क मिलने की बात कही गई है
प्रिय भक्तो एक बार अर्जुन ने भगवान से पूछा मनुष्य न चाहते हुए भी क्यों पाप करता है और पाप का फल भोगने के लिए नरकों में जेल में चौरासी लाख योनियों में जाता है
भगवान ने उत्तर दिया कामना मनुष्य से पाप कराती है और कामना से उत्पन्न होनेवाला क्रोध और लोभ यही मनुष्य को पाप में लगाते हैं और पाप से दुखी होता है दुर्गति में जाता है
प्रिय भक्तो मनुष्य के मन में इंद्रियों में बुद्धि में अहम में और विषयों में कामना का वास होता है
कामना ही मनुष्य की बारी है पतन का कारण है
ज्ञान रूपी तलवार से इसका भेदन करना चाहिए
मनुष्य के कर्म बंधन का कारण बनते हैं
लेकिन वही कम दूसरों के हित के लिए किए जाते हैं तो मुक्त करने वाले बन जाते हैं
अपने लिए करें स्वार्थ से करें कामना से करें तो वहीं कर्मबन्धन है आफत है भोग है और दूसरों के लिए करें निष्काम भाव से करें प्रेम से करें तो वही कर मुक्ति का आनंद का योग का कारण बनते हैं
प्रिय भक्तो दूसरों के लिए कम करना ही यज्ञ है गीता में अनेक प्रकार के यज्ञ बताए गए हैं
दूसरों के हित में समय संपत्ति साधन लगाना द्रव्य योग्य है परमात्मा की प्राप्ति के उद्देश्य से योग करना योग यज्ञ है
इंद्रियों का संयम करना संयम यज्ञ है भगवान के शरण होना भर्ती यज्ञ है
शरीर से असर हो जाना अपने आप को जानना ज्ञान यज्ञ है
जो सारे यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ है
प्रिय भक्तो क्योंकि इससे सब कर सकते हैं और इसमें कोई खर्चा भी नहीं है
यह मुक्ति का सीधा मार्ग है सत्संग से जो विवेक प्राप्त होता है
दो विवेक ही इस यज्ञ की सामग्री है
श्रद्वा उत्कर्ष अभिलाषा इंद्रिय संयम इस यज्ञ के उपकरण हैं
हमें ज्ञान यज्ञ में अपनी कामनाओं की आहुति डालकर जीवन मुक्ति का फल प्राप्त करना है मित्रो विडियो को लाइक और चैनल को सब्सक्राइब जरुर करे ! जय श्री कृष्णा !